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Showing posts from January, 2019

हजरत शुऐब और उन की कौम

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                हजरत शुऐब और उन की कौम हजरत शुऐब अल्लाह के मशहूर नबी है, वह कसरत से नमाज व जिक्र में मश्गुल रहते और अल्लाह तआला के खौफ से खूब रोया करते थे, कुर्आन मजीद में उन का तजकेरा ११ मर्तबा आया है, उन का नसब हजरत इब्राहीम के बेटे मदयन से मिलता है, जो अपने अहले खाना के साथ हिजाज (अरब) चले गए थे, बढते बढते यह खान्दान कबीले की शक्ल में हिजाज की आखरी सरहदों से मुल्के शाम के करीब तक फैल गया था, अहदे नबवी में शाम, फलस्तीन और मिस्र जाते हुए रास्ते में मदयन के खडंरात नजर आते थे, हजरत शुऐब इसी कबीले में पैदा हुए और बाद में यह कबीला कौमे शुऐब कहलाया | यह कौम बुत परस्ती, मुशरिकाना अकाइद, नाप तौल में कमी, लुट मार और डाका जनी जैसे जराइम में मुब्तला थी | नुबुव्वत मिलने के बाद हजरत शुऐब ने उन लोगों को ईमान व तौहीद की दावत देनी शुरू करदी | उन के वाज व नसीहत और तकरीर व खिताबत से लोगों के दिलों पर बडा असर होता था, इसी लिये हुजूर ने उन को “ खतीबुल अम्बिया ” के लकब से नवाजा |                                                                                                               

हजरत युसूफ की नुबुव्वत व हुकूमत

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          हजरत युसूफ की नुबुव्वत व हुकूमत अल्लाह तआला ने हजरत युसूफ को ईमान व तौहीद और वही की बरकोतों से नवाजा था, अगरचे शुरु में माल व दौलत, दुनियवी तरक्की और शहरी जिन्दगी उन्हें हासील नहीं थी और देहात की सादा और बे तकल्लुफ जिन्दगी गुजारते थे, मगर कुदरते इलाही का करिश्मा देखिये के देहात के रहने वाले अपनी ख्वाहिश व मर्जी के बगैर मिस्र जैसे तहजीब व तमद्दुन वाले मुल्क में पहुँच गए और इम्तेहान व अजमाइश के मुख्तलिफ मरहलों मे गुजरते हुए वहाँ के बादशाह के पास पहुँच गए, फिर एक मर्तबा बादशाह के एक ख्वाब की ताबीर बताने के बाद मुल्के मिस्र की सुरते हाल का तजकेरा करते हुए फर्माया : कहत साली के इस दौर में हुकूमत को कामयाबी के साथ चलाने की सलाहियत और तबाही से निकालने की तदबीर और मुल्क की गिरती हुई मईशत ( Economy) की हिफाजत करना मैं जानता हूँ | जब अजीजे मिस्र ने ख्वाब की सही ताबीर और हजरत युसूफ की अमानत व दियानत और सादगी  व सच्चाई को अपनी आँखों से देख लिया, तो हुकूमत के ओहदेदारों और आम व खास शहरियों को जमा कर के तख्त व हुकूमत आप के हवाले करदी, आप की दावती कोशिशों से बादशाह ने ईमान कबुल क

हजरत युसूफ की आजमाइश

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                हजरत युसूफ की आजमाइश तमाम अम्बियाए किराम की तरह हजरत युसूफ को भी अल्लाह की रजा व खुश्नूदी हासिल करने के लिये सख्त आजमाइशों से गुजरना पडा चुनांचे वालिदे मुहतरम की शफकत व मुहब्बत से महरूम करने के लिये सौतेले भाइयों ने साजिश कर के आप को अंधेरे कुंवे मे डाल दिया, फिर एक काफले के जरिये अजीजे मिस्र के हाथों बेच दिये गए |  चंद साल ही गुजरे थे के अजीजे मिस्र की बीवी की साजिश पर तकरीबन ९ साल जेल में रहना पडा | जब आप ने उन तमाम मराहिल को सब्र व इस्तेकामत के साथ तय कर लिया तो अल्लाह तआला ने अप के अन्दर हिल्म व वकार, अमानत व दियानत और इज्जत व शराफत जैसी सिफात मुकम्मल तौर पर पैदा फर्मा दी, आप के इस सब्र व इस्तेकामत की बिना पर बिछडे हुए भाइयों को मिला दिया, वालिद की गई हुई बीनाई वापस कर दी और सब से बढ कर आप को जेल खाने से निकाल कर नुबुव्वत हुकूमत से भी सरफराज फर्मा दिया | इस तरह अल्लाह तआला सब्र करने वाले अपने मुखलिस बन्दों को दीन व दुनिया की दौलत व इज्जत अता फर्माया करता है |                                                   

हजरत यूसुफ

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                          हजरत यूसुफ  हजरत यूसुफ बडे मश्हूर और जलीलुलकद्र पैगम्बर है, वह हजरत याकूब के बेटे  हजरत  इसहाक के पोते और हजरत इब्राहीम के पर पोते है, अल्लाह तआला ने उन की शान में एक मुकम्मल सुरत “सूर-ए-यूसुफ” के नाम से नाजील फर्माई है, जिस में उन की जिन्दगी के हलात व वाकिआत अजीब अन्दाज से बयान फर्माए हैं |                कुर्आने करीम में २७ मर्तबा उन का तजकेरा आया है, उन की पैदाइश हजरत इब्राहीम के तकरीबन दो सौ पचास साल बाद इराक के शहर “फद्दान इरम” में हुई | बचपन ही में वह अपने वालिद के साथ फलस्तीन आगए थे, उन के गयारा भाइयों में बिनयामीन के अलावा बाकी सब सौतेले भाई थे | हजरत याकूब उन से बे हद मुहब्बत करते थे, किसी वक्त भी उन की जुदाई गवारा न थी, क्योंकि शुरू ही से उन की फितरी सलाहियत दुसरे भाइयों के मुकाबले में बिल्कुल मुमताज और रोजे रौशन की तरह जाहिर थी | हजरत याकूब होनहार फरजन्द की पेशानी पर चमकता हुआ नुरे नुबुव्वत पहचानते थे और वहिये इलाही के जरिये उस की इत्तेला पा चुके थे, अल्लाह तआला ने उन्हें नुबुव्वात के साथ हुकूमत व सलतनत से भी नवाजा था |            

हजरत याकूब पर आजमाइश

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                हजरत याकूब पर आजमाइश   दिगर अम्बिया की तरह हजरत याकूब को भी काफी मुसीबतें बरदाश्त करनी पडी, जान व माल और औलाद में सख्त तरीन आजमाइशों का सामना करना पडा, मगर हर मौंके पर वह साबिर व शाकिर ही रहे |  खास तौर पर औलाद में एक लम्बे जमाने तक इम्तेहान में मुब्तला रहे | बुढापे में हजरत युसूफ जैसे महबूब बेटे की जुदाई के गम में रोते रोते उन की बीनाई चली गई थी, अभी यह रंज व गम खत्म नही हुआ था के उन के दुसरे बेटे बिनयामीन की जुदाई का वाकिआ पेश आगया | इस तरह उन की महबूब औलाद उन से दूर हो गई | इस के साथ ही दवात व तब्लीग में पेश आने वाली तकालीफ और लोगों के इस दावत को कबूल न करने का रंज व गम अलग था | मगर अल्लाह तआला के यह जलीलुलकद्र नबी सारी मुसीबतों को बरदाश्त कर के सब्र व शुक्र करते थे और अल्लाह तआला  की मदद के तलबगार रहते थे | अल्लाह तआला ने उन के सब्र का यह बदला आता किया के बिखरे हुए बेटों से मुलाकात करादी और तमाम औलाद को जमा कर दिया और साथ ही उन की बीनाई भी वापस करदी | यकीनन अल्लाह तआला सब्र करने वालों को ऐसे ही इनामात से नवाजाता है |          

हजरत याकूब

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                       हजरत याकूब       हजरत याकूब बिन इसहाक बिन इब्राहीम अल्लाह के नबी और अहले कनांन (फलस्तीन) के हादी व पैगम्बर थे | कुर्आने करीम में दस से जाइद मर्तबा उन का जिक्र आया है और जगह जगह उन के औसाफ का तजकेरा कर के उन के जलीलुलकद्र नबी और साहिबे सब्र व कनाअत होने की तरफ इशारा किया है | हजरत याकूब को इबरानी जबान में इस्राईल भी कहा जाता है | हजरत इब्राहीम की जो नस्ल आगे चल कर बनी इस्राईल कहलाई वह उन्हीं की तरफ मन्सुब है | उन्होंने चार शादियाँ की थी |        अल्लाह तआला ने हर एक से औलाद अता फर्माई, उन को बारा लडके और एक लडकी थी | बिनयामीन के अलावा सारे लडके इराक के शहर “फद्दान इरम” में पैदा हुए थे | एक सौ तीस साल की उम्र में वह अपने महबूब बेटे हजरत यूसुफ की फर्माईश पर अपने पुरे खान्दान के साथ मिस्र चले गए थे, वहाँ १७ साल कयाम रहा और वहीं १४७ साल की उम्र में वफात पाई | हजरत युसूफ ने उन्हें फलस्तीन ला कर हजरत इब्राहीम और हजरत इसहाक के साथ दफन किया |                                               

कौमे लूत पर अजाब

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                    कौमे लूत पर अजाब अल्लाह तआला ने हजरत लूत को अहले सदूम की हिदायत व इस्लाह के लिये नबी बना कर भेजा | यह लोग बडे सरकश व नाफर्मान और गुनहगार थे, औरतों के बजाए मर्दो से ख्वाहिश पुरी करना, बाहर से आने वाले ताजीरों का माल हीले बहाने कर के लुट लेना और भारी मज्लिस में खुल्लम खुल्ला गुनाह करना उन की फितरत बन गई थी | हजरत लूत ने उन को तमाम बुराइयों और गुनाहों से बचने की नसीहत फर्माई, अल्लाह ताआल का दीन कबूल करने की दावत दी और उस के अजाब से डरने का हुक्म दिया, मगर उन की इस दावत व नसीहत का कौम पर कोई असर नहीं हुआ और गुनाहों से बाज रहने के बजाए, आप को पत्थर मार कर बस्ती से बाहार निकाल देने के धमकी देने लगे और मजाक करते हुए अजाबे इलाही का मुतालबा करने लगे | हजरत लूत के बार बार समझाने के बावजुद वह अपनी जिद और हट धर्मी से बाज नही आए, तो अल्लाह तआला ने उस नापाक कौम को दुनिया से मिटाने के लिये अजाब के फरिश्तो को भेज दिया | हजरत लूत फरिस्तों के इशारे पर अपने घर वालों को ले कर सिग्र नामी बस्ती में चले गए और सुबह होते ही एक भयानक और जोरदार चीख ने सारे शहर वालों को हलाक कर दि