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Showing posts from December, 2018

हजरत लूत

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                          हजरत लूत हजरत लूत अल्लाह के मशहूर नबी हैं, उन के वालीद का नाम हारान था, वह हजरत ईसा से तकरीबन दो हजार साल पहले पैदा हुए, उन का वतन इराक का मशहूर शहर “बाबुल” था | वह हजरत इब्राहीम के भतीजे थे और सब से पहले उन पर ईमान लाने वाले थे, हजरत इब्राहीम ने ही बचपन से उन की तरबियत व परवरिश फर्माई |  जब हजरत इब्राहीम ने इराक से हिजरत की तो हजरत लूत भी उस सफर में आप के साथ थे | मिस्र से वापसी पर हजरत इब्राहीम तो फलस्तीन में मुकीम हो गए, मगर हजरत लूत हिजरत कर के उरदुन ( शाम ) चले गए, उस इलाके में चंद मील के फास्ले पर बहरे मय्यित के किनारे सदूम व आमूरा नामी बस्तियाँ आबाद थी, उन के रहने वोलों की इस्लाह के लिये अल्लाह तआला ने हजरत लूत को नबी बना कर भेजा |                             

जुलकरनैन

                     जुलकरनैन कुर्आने करीम के सूर - ए-कहफ में एक ऐसे बादशाह का तजकेरा किया गया है, जिन का लकब “जुलकरनैन” है, वह बहुत नेक दिल बादशाह थे | उन्हीं की बदौलत बनी इसराईल ने बाबुल की गुलामी से नजात पाई थी और यरोशिलम (बैतुलमकदिस) जैसी मुहातरम जगह हर किस्म की तबाही व बरबादी के बाद उन्हीं के हथों दोबारा आबाद हुआ था |   उन्होंने मश्रीक व मगरीब का सफर किया और फुतूहात भी की | एक मर्तबा सफर के दौरान एक कौम से मुलाकात हुई जिन्होंने बादशाह जुलकरनैन से याजूज व माजूज के फितना व फसाद की शिकायत की और कहा : ऐ जुलकरनैन ! उन लोगों से हमारी हिफाजत के लिये एक दिवार काएम कर दीजीये | उस पर आप जो मुआवजा लेना चाहेंगे हम देने के लिये तय्यार हैं |    लेकिन जुलकरनैन ने मुआवजा लेने से इन्कार कर दिया और कहा : अल्लाह ने जो कुछ मुझे दिया हैं वह मेरे लिये काफी है | फिर उन्होने एक मजबूत दीवार काएम कर दी, जो सद्दे सिकंदरी के नाम से मशहूर है |                                                                                                                                                              

हजरत ईसा के मुअजिजात और खुसूसियत

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       हजरत ईसा के मुअजिजात और खुसूसियत   जब हजरत ईसा ने बनी इस्राईल को तोहीद की दावत दी और कौम ने अप को झुटलाया, तो अल्लाह तआला ने उन की नुबुव्वत की तसदीक के लिये बहुत से मुअजिजात अता फर्माए, जिन का तजकरा कुर्आने पाक में भी आया है |   मसलन अल्लाह तआला ने उन को बगैर बाप के पैदा फर्माया और पैदाइश के बाद उन्होंने गोद ही में अपनी माँ की पाक दामनी की गवाही दी, अल्लाह के हुक्म से वह मुर्दो को जिन्दा और पैदाईशी अंधो को देखने वाला कर देते, मिट्टी से परिन्दे बना कर   फूँक मार कर उडा देते, कोढ के मरीजों पर हाथ फेर कर अछा कर देते, लोगों के घरों में रखी हुई चीजों के बारे में खबर बता दिया करते थे और हवारियों की फर्माइश पर आप की दुआ से आसमान से खाने का दस्तरख्वान नाजिल हुआ, आखिर में अल्लाह तआला ने दुश्मनों से हिफाजत करते हुए उन को जिन्दा आसमान पर उठा लिया, और आखरी जमाने में कयामत के करीब आसमान से उतरेंगे और द्ज्जाल को कत्ल करेंगे |                                                                                                                                                              

हजरत इसहाक की खुसूसियत व अजमत

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          हजरत इसहाक की खुसूसियत व अजमत हजरत इसहाक अल्लाह तआला के जलीलुलकाद्र नबी और बहुत सारी सिफात के मालिक थे | कुर्आने करीम ने उन की नेकी व शराफत, नबुव्वत व रहमत और बलंदी व अजमत की शहादत दी है | उन्हें यह फजीलत व खुसूसियत हासील है के बनी इस्राईल के सारे अम्बिया उन्हीं की नस्ल से हैं | तारीख से मालूम होता हैं के तकरीबन साढे तीन हजार अम्बिया उन की नस्ल में पैदा हुए हैं | उस के साथ “मस्जिदे अक्सा” जैसी अजीमुश्शन मस्जिद की तामीर का शर्फ भी उन्हीं को हासील है | अल्लाह तआला ने उन के फजल व कमाल का तजकेरा करते हुए  फर्माया : हम ने हजरत इब्राहीम को हजरत इसहाक ( की विलादत ) की बशारत दी के वह नबी नेक बन्दों में होंगे और हम ने उन पर और इसहाक पर बरकतें नाजिल फर्माई |                        { सूर-ए-साफ्फात : ११२ ता ११३} उन की पैदाइश सरजमीने इराक में हुई मगर पुरी जिन्दगी मुल्के शाम में रहे और एक सौ साठ साल या एक सौ अस्सी साल की उम्र में वफात पाई और अपने वालिदे मोहतरम के बराबर में “मदिनतुल खलील” में दफ्न हुए |                                                                       

हजरत इसहाक की पैदाइश

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                 हजरत इसहाक की पैदाइश हजरत इसहाक की विलाद्त बासआदत अल्लाह तआला की एक बडी निशानी है, क्योंकि उन की पैदाइश ऐसे वक्त में हुई जब के उन के वालिद हजरत इब्राहीम की उम्र १०० साल और उन की वालीदा हजरत सारा की उम्र ९० साल हो चुकी थी, हालाँके आम तौर पर इस उम्र में औलाद नहीं होती है | जब फरिश्तों ने उन की पैदाइश की खुशखबरी दी, तो दोनों हैरत व तअज्जूब में पड गए | मगर फरिशतों ने यकीन दिलाया और कहा : आप नाउम्मीद मत हों | चुनान्चे अल्लाह तआला के हुक्म से इसहाक पैदा हुए | उसी साल हजरत इब्राहीम व इस्माईल ने बैतुल्लाह की तामीर फर्माई थी | यह हजरत इस्माईल से चौदा साल छोटे थे | ६० साल की उम्र में हजरत इब्राहीम ने अपने भतीजे की लडकी से उन की शादी कराई, उन से दो लडके पैदा हुए, एक का नाम ईसू और दुसरे का नाम याकूब था |                                                                                                                                            

हजरत इस्माईल

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                        हजरत इस्माईल हजरत इस्माईल हजरत इब्राहीम के बडे फरजन्द थे | कुर्आने करीम में उन का तजकेरा आठ जगहों पर आया है | हुजूर और अरब के मशहूर और बाइज्जत खान्दान कुरैश का तअल्लुक भी उन्हीं की नस्ल से है |  पैदाइश के बाद हजरत इब्राहीम अल्लाह तआला के हुक्म के मुताबिक उन्हें उन की वालिदा के साथ बैतुल्लाह के करीब चटियल मैदान में छोड कर चले गए थे, जब खाने पीने का सामान खत्म होगया, तो हजरत इस्माईल की तरबियत व परवरीश के लिये अल्लाह तआला ने जमजम का चश्मा जारी कर दिया, जो आज तक मौजूद है | इत्तेफाक से बनू जुरहुम का एक काफ्ला उधर से गुजरा तो उस चश्मे को देख कर हजरत हाजरा से उस जगह बसने की इजाजत चाही, इजाजत मिलते ही बैतूल्लाह के आस पास एक बस्ती आबाद होगई | जब अल्लाह तआला ने हजरत इब्राहीम से हजरत इस्माईल की कुर्बानी तलब फर्माई, तो दोनों बखुशी तय्यार हो गए और बाप बेटे को कुर्बान करने के लिये चल पडे, जब छुरी गर्दन पर चलने लगी तो अल्लाह तआला ने खुश हो कर उस की जगह जन्नत से दुंबा भेजा, फिर उस की कुर्बानी की, चुनान्चे इसी की याद में ईदुल अजहा के मौके पर जानवरों की कुर्बानी का

हजरत इब्राहीम के अहले खाना

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              हजरत इब्राहीम के अहले खाना अल्लाह तआला ने हजरत इब्राहीम के अहल व अयाल में खूब बरकतें और रहमतें नाजिल फर्माई थी | उन को औलाद भी ऐसी मिलीं के सिर्फ नबी नहीं बल्के अम्बिया के मुरिसे आला बनीं |  उन्होंने तीन शादियाँ की थीं | पहली बीवी का नाम सारा है, जो आप ही के खान्दान से थीं, उन से हजरत इसहाक जैसे पैगम्बर पैदा हुए, जिन की नस्ल से तकरीबन साढे तीन हजार अम्बिया पैदा हुए | उन की दुसरी बीवी का नाम हाजरा है, जो शाहे मिस्र की बेटी थी, बादशाह ने हिजरत के दौरन उन्हें हजरत इब्राहीम की जोजियत में दिया था | उन से हजरत इस्माईल की पैदाइश हुई जो जालीलुलकद्र नबी होने के साथ सय्यिदुल अम्बिया मोहम्मद मुस्तफा के जददे आला भी हैं | तीसरी बीवी का नाम कतुरा बताया जाता हैं, उन से हजरत इब्राहीम ने हजरत सारा की वफात के बाद अक्द फर्माया था | उन से कुल छ औलादें हुईं | उन की नस्ल और खान्दान को “बनू कतूरा” कहा जाता है |                                                                            

हजरत इब्राहीम की आजमाइश

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          हजरत इब्राहीम की आजमाइश हजरत इब्राहीम की पुरी जिन्दगी आजमाइशों से भरी हुई है, उन्हें बडे बडे इम्तेहान से गुजरना पडा | मगर हर मौके पर अल्लाह तआला ने उन्हें नजात दी | गौर की जिये के जब उन के वालीद समेत पुरी कौम और बादशाहे वक्त ने पैगामे हक सुनाने की वजह से दहेकती हुई आग में डालने का फैसला किया तो बातिल परस्तों का यह खतरनाक फैसला भी हजरत इब्राहीम के कदमों को डगमगा न सका |  फिर जब बुढापे की उम्र में दुआओं और हजार तमन्नाओं के बाद हजरत इस्माईल की पैदाइश हुई तो उन्हें बिल्कुल बचपन ही में, अपने से जुदा करने का अल्लाह तआला ने हुक्म दिया और जब वह कुछ बडे हुए तो फिर अल्लाह तआला ने उन्हें अपने नाम पर कुर्बान करने का हुक्म दिया | यह सब ऐसे सख्त मराहिल थे के जहाँ बडे बडे जवाँ मर्द के कदम भी डगमगाने लगेत है, मगर कुर्बान जाइये हजरत इब्राहीम की कुर्बानी और जज्बए इतआत पर के हुक्म मिलते ही उस को पुरा करने के लिये तय्यार होगए और एक वफादार इन्सान की तरह जो कुछ कर सकते थे कर गुजरे | यकीनन उन की यह बे मिसाल इताअत व फर्माबरदारी पुरी उम्मत के लिये एक बेहतरीन नमुना और इबरत है |          

हजरत इब्राहीम को सजा देने की तजवीज

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        हजरत इब्राहीम को सजा देने की तजवीज हजरत इब्राहीम की दावते तोहीद की खबर आहिस्ता आहिस्ता बादशहा नमरूद को भी पहुँच गई, जिस ने खुदाई का दावा कर रखा था | बादशाह ने हजरत इब्राहीम को तलब किया | मगर इस अजीम पैगम्बर ने वहाँ भी अल्लाह तआला की वहदानियत और उस की सिफात को खूब अच्छी तरह वाजेह किया, जिस से बादशाह लाजवाब हो गया और दुश्मनी पर उतर आया | अब वालीद, कौम और बादशाहे वक्त ने मिल कर उन्हे सजा देनी की तदबीर की और बादशाह के मुश्वरे पर कौम के लोगों ने एक खास जगह में कई रोज तक आग दहकाई जिस के शोलों से आस पास की चीजें झुलसने लगीं | जब लोगों को यकीन हो गया के हजरत इब्राहीम इस आग से जिन्दा बच कर हरगीज नहीं निकल सकेंगे तो उन को उस आग में डाल दिया | मगर रब्बुलआलमीन की मदद और उस की जबरदस्त ताकत के सामने उन कम अक्लों की तदबीरें कहाँ चल सकती थी | अल्लाह तआल ने आग को हुक्म दिया के ऐ आग ! तू इब्राहीम पर सलामती के साथ ठंडी हो जा ! आग शोलों और अंगारों के बावजुद उसी वक्त उन के हक में ठंडी हो गई और हजरत इब्राहीम उस में सही व सालिम रहे | इस कुदरते खुदावन्दी और मुअजिजे को देखने के बाद भी लोगो

हजरत इब्राहीम की दावत

                     हजरत इब्राहीम की दावत जब हजरत इब्राहीम ने अपनी कौम की शिर्क व बुत परस्ती और जलालत व गुमराही का मुशाहदा किया, तो उन्हें सीधी राह पर लाने की कोशिश करने लगे | सब से पहले अपने बाप को मुखातब होकर कहा : अब्बा जान ! आप ऐसी चीजों की क्यों इबादत करते हैं, जो सुनने देखने और बोलने की भी सलाहियत नही रखती, न ही वह नफा व नुकसान की मालिक हैं, वह चीजें बजाते खुद बेबस और लाचार हैं, उन में अपने वुजूद को भी बाकी रखने की ताकत नही है | ऐसी चीजें दुसरों के क्या काम आ सकती हैं | अब्बा जान ! सीधी और सच्ची रह वही है, जो मैं बता रहा हुँ के एक अल्लाह की इबादत करो, वही मौत व हयात का मालिक है | वही लोगों को रिज्क देता है, उसी के रहम व करम से आखीरत में कामयाबी मिल सकती है, वही हर एक को नजात देने पर कादिर है और वह जबरदस्त कुव्वत व ताकत का मालिक है | हजरत इब्राहीम ने उस के बाद कौम के लोगों को भी इन्हीं बातों की नसीहत की | मगर अफसोस ! किसी ने भी आप की दावत को कुबूल नही किया | उन के वालीद ने तो यहाँ तक कह दिया के इब्राहीम ! अगर तू बुतों की बुराई से बाज नही आया, तो मैं तुझे संगसार कर दुँग | फ

हजरत इब्राहीम की कौम की हालत

          हजरत इब्राहीम की कौम की हालत हजरत इब्राहीम ने जिस खान्दान और माहौल में आँखे खोली, उस में शर्क व बुत परस्ती और जलालत व गुमराही बिल्कुल आम थी | सारे लोग बुतों की पूजा करते और चाँद, सुरज और सितारों को अपनी हाजत व जरुरत पुरी करने का जरिया समझते | हर एक ने अल्लाह तआला की ताकत व कुदरत और वहदानियत को भूल कर बेशुमार चीजों को अपना माबुद बना लिया था | खुद हजरत इब्राहीम के वालीद आजर अपनी कौम के मुख्तलिफ कबीलों के लिये लकडीयों के बूत बनाते और लोगों के हाथों फरोख्त करते थे और फिर लोग उस की पूजा करते थे | यह तक के आजर खुद अपने हथों से बनाए हुए बुतो की इबादत करते और उन से अकीदत व मुहब्बत का इजहार करते थे |  ऐसी जाहलत गुमराही और हक्क व सदाकत से महरूम माहौल में हजरत इब्राहीम ने तौहीद की आवाज लगाई और लोगों को समझाया | मगर किसी ने आप की दावत को तस्लीम नही किया और सख्ती के साथ मुखालफत करने लगे |                                                                                                                 

हजरत इब्राहीम

                            हजरत इब्राहीम हजरत इब्राहीम की पैदाइश हजरत इसा से दो हजार साल कब्ल इराक में हुई | वह एक अजीम पैगम्बर और हादी व रहेनुमा थे | कुर्आन में ६९ जगह उन का तजकेरा आया है और मक्की व मदनी दोनों तरह की सुरतों में उन्हें “दीने हनीफ” का दाई, हजरत इस्माईल के वालीदे मोहतरम, अरब के जद्दे अमजद, बैतुल्लाह शरीफ की तामीर करने वाला और अरब कौम का हादी व पैगम्बर बताया गया है | अल्लाह तआला ने उन्हें खास रहमत व बरकत और फजीलत से नवाजा था, उन के बाद आने वाले सारे अम्बिया उन्हीं की नस्ल में पैदा हुए, इसी वजह से वह “अबुल अम्बिया” के लकब से मशहूर हैं | अल्लाह तआला ने नुबुव्वत रिसालत के साथ माल व दौलत भी आता किया था | सखावत व दरिया दिली और मेहमान नवाजी में बहुत मशहूर थे, इस के साथ हि सब्र व तहम्मुल, अल्लाह तआला की जात पर मूकम्मल एतेमाद व भरोसा और लोगों पर शफाकत व मेहरबानी उन की खास सिफत थी |                                                                                                                                                               

हजरत सालेह की दावत और कौम का हाल

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         हजरत सालेह की दावत और कौम का हाल हजरत सालेह हजरत हूद के तकरीबन सौ साल बाद पैदा हुए | कुर्आन में उन का ताजकिरा ८ जगहों पर आया है | अल्लाह तआला ने उन्हें कौम समूद की हिदायत व रहेनुमाई के लिये भेजा था |  उस कौम को अपनी शान व शौकत, इज्जत व बडाई फाख्र व गुरुर और शिर्क व बुत परस्ती पर बडा नाज था | हजरत सालेह ने उन्हें नसीहत करते फर्माया ऐ लोगो ! तुम सिर्फ अल्लाह की इबादत करो उस के सिवा कोई बन्दगी के लाएक नहीं | वह इस पैगामे हक को सून कर नफरत का इजहार करने लगे और हुज्जत बाजी करते हुऐ नुबुव्वत की सच्चाई के लिये पहाड से हामिला ऊँटनी निकलने का मुतालबा करने लगे | हजरत सालेह ने दुआ फरमाई, अल्लाह तआला ने मुअजिजे के तौर पर सख्त चटान से ऊँटनी पैदा करदी, मगर अपनी ख्वाहिश के मुताबिक मुअजिजा मिळने के बाद भी इस बदबख्त कौम ने नही माना और कुफ़्र व ना फर्मानी की इस हद तक पाहूँच गई के ऊँटनी को कत्ल कर डाला और इसी पर बस नही किया बल्के हजरत सालेह के कत्ल का भी मन्सूबा बना लिया | इस जुर्मे अजीम और जालिमाना फैसले पर गैरते इलाही जोश में आई और तीन दिन के बाद एक जोरदार चीख और जमीनी जलजले ने पुरी कौ

कौमे समूद

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                           कौमे समूद कौमे समूद का जिक्र कुर्आन मजीद में २३ मर्तबा आया है | कौमे आद की हलाकत के बाद यह अरब की मशहूर और कदीम तरीन कौम है | इस का नसब हजरत नूह के बेटे साम से मिलता है, हिजाज व शाम के दर्मियान वाहिद कुरा के मैदान में उन की आबादियाँ थी, जिन के खंडरात व निशानात आज भी मौजूद हैं |  इन का दारूलहुकूमत मदीना तय्यबा से शिमाल की तरफ मकामे हिज्र में था, जिसे अब “मदाइने सालेह” कहते हैं | इस कौम का जमाना हजरत इब्राहीम से पहले का है, यह अपने वक्त की मोहज्जब, तरक्की याप्ता, ताक्तवर और बडी मालदार कौम थी, पहाडों को तराश कर बडी बडी इमारतें बनाना और संग तराशो को भारी मजदूरी दे कर बडे बडे बुत बनवाना इन की जिन्दगी का महबूब मश्गला था, इन के दिलों में बुतों की इतनी अकीदत व मुहब्बत पैदा होगई थी के अल्लाह तआला को छोड कर इन्हीं की पूजा को अपनी नजात का जरिया समझने लगे थे | जब उस कौम की शिर्क व बूत परस्ती हद से बढ गई, तो अल्लाह तआला ने उन की हिदायत व इस्लाह के लिये हजरत सालेह को रसूल बना कर भेजा |