हूजूर का शाम का पहेला सफर Hujur ka sham ka pahela safar
दादा अब्दुल मुत्तलिब के इन्तेकाल के बाद हुजूर स. अपने चचा अबू तालिब के साथ रहेने लगे | वह अपनी औलाद से जियादा अप स. से मुहब्बत करते थे, जब वह तिजारत की गर्ज से शाम जाने लगे तो आप स. अपने चचा से लिपट गए | अबू तालिब पर इस का बडा असर पडा और आप को सफर मे साथ ले लिया | इस काफले मे शाम पहुँच कर “ मकामे बसरा ” मे कयाम किया | यहा बुहैरा नामी राहीब रहाता था | जो ईसाय्यत का बडा आलिम था | उस ने देखा के बादल आप पर साय किय हुए है और दरख्त की टहनियाँ आप स. पर झुकी हुई है | फिर उस ने अपनी आदत के बर खिलाफ इस काफले की दावत की | जब लोग दावत में गए, तो आप को कम उम्र होने की वजह से एक दरख्त के पास बैठा दिया | मगर बुहैरा ने आप स. को भी बुलवाया और अपनी गोद में बिठा कर मुहरे नबुव्वत देखने लगा | उन्होंने तौरात व इन्जील में आखरी नबी स . से मुतअल्लिक सारी निशनियों को अप के अन्दर मौजूद पाया | फिर अबू तालिब से कहा के तुम्ह्रारा भतीजा आखरी नबी बनने वाला है | इन को मुल्क शाम न लेजाना, वरना यहुदी कत्ल की कोशिश करेंगे इंन्हे वापस ले जाओ और यहुद से इन की हिफाजत करो, चुनान्चे अबू तालिब इस मुख्तसर