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हुस्ने निय्यत की अहमियत व जरुरत Husne Niyyat ki ahmiyat v jrurat.

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इन्सान के आमाल और किरदार मे हुस्ने निय्यत को बडी अहमियत हासिल है | बल्के इन्सान के आमाल की अल्लाह के यहाँ मकबुलियत का दरोमदार निय्यत के दुरुस्त होने पर है | अगर इन्सान अपनी जिंदगी नबी अकरम सल्ल. अलैहि व सल्लम की लाई हुई शरीअत के मुताबिक गुजारे, उसके निय्यत सही हो और वो अपना हर कौल व अमल अल्लाह तआला कि खुशनुदी और रजा की खातिर अंजाम दे तो इन्सान का उठना बैठना, खाना पीना, सोना जागना गर्ज उसकी चौबीस घंटे की जिंदगी का हर छोटा बडा अमल हर लम्हा इबादत में शुमार होगा | इसके बरखिलाफ कोई इन्सान बडे बडे कारनामे अंजाम देता है लेकीन उसके आमाल हुस्ने निय्यत की रूह से खाली है तो ये आमाल अगरचे जाहिरी बडे बडे है लेकीन चुँके बेजान और बेरुह है, लेहजा अल्लाह के नज्दिक ऐसा अमाल के अहमियत खत्म हो जाती है | हुस्ने निय्यत के बावजुद इन्सान को अपने आमाल व अफआल पर घमंड और भरोसा नही करना चाहिए, बल्के मुसलमान अल्लाह तआला के फजल का तालिब रहना चाहिए, नफ्स व शैतान के धोके से डरना चाहिए और हुस्ने खात्मा की दुआ करनी चाहिए, क्यौके हुस्ने खात्मा ही आमाल का मदार है | अल्लाह तआला हमे अपने आमाल मे हुस्ने निय्यत

रमजान की फरजियत और ईद की खुशी. RAMJAN KI FARJIYAT AUR ID KI KHUSHI.

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सन २ हिजरी में रमजान के रोजे फर्ज हुए | इसी साल सदक-ए-फित्र और जकात का भी हुक्म नाजिल हुआ, रमजान के रोजे से पहले आशुरा का रोजा रखा जाता था, लेकीन यह इख्तियारी था, जब रसुलूल्लाहा सल. मदीना तशरीफ लाए, तो देखा के अहले मदीना साल में दो दिन खेल, तमाशों के जरीये खुशियाँ मनाते है, तो आप सल. ने उन से दरयाफ्त फर्माया के इन दो दिनों की हकीकत क्या है ? सहाबा ने कहा : हम जमान-ए-जाहिलियत में इन दो दोनों मे खेल, तमाशा करते थे, चुनान्चे रसुलूल्लाह सल. ने फर्माया : अल्लाह ताआला ने इन दो दिनों को बेहतर दिनों से बदल दिया है, वह ईदुल अजहा और ईदुलफित्र है, बिल आखिर १ शव्वाल सन २ हिजरी को पहली मर्तबा ईद मनाई, अल्लाह तआला ने ईद की खुशियाँ व मसर्रतें मुसलमानों के सर पर फताह व इज्जत का ताज रखने के बाद आता फर्माई, जब मुसलमान अपने घरों से निकल कर तक्बीर व तौहीद और तस्बीह व तहमीद की आवाजें बुलन्द करते हुए मैदान में जाकर नमाजे ईद अदा कर रहे थे, तो दिल अल्लाह की दी हुई नेअमतों से भरे हुए थे, इसी जजब-ए-शुक्र में दोगाना नमाज में उन की पेशानी अल्लाह के सामने झुकी हुई थी |

हजरत अबूबक्र सिद्दीक

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हजरत अबूबक्र सिद्दीक रज . कुरैश के खानदान में पैदा हुए, अबू बक्र आप की कुन्नियत है. नाम अब्दुल्लाह वालिद का नाम उसमान और वालीदा का नाम सलाम था, आप बचपन हि से नेक तबीयत और सादा मिजाज इन्सान थे | जमान-ए-जाहालत में अपने न कभी शराब पी और न कभी बुतों को पूजा | उम्र मे हुजर सल. से ढाई साल छोटे थे, मगर आप सल. से बडी गहरी दोस्ती और सच्ची मुहब्बत थी, आपने हुजर सल. के अख्लाक व आदत को बहुत करीब से देखा था, जब हुजूर सल ने उन की इस्लाम की दावत दी और अपनी नुबुव्वत का एलान किया, तो मर्दो मे सब से पहले ईमान लाने की सआदत उन को नसीब हुई और हुजूर सल. की नबुव्वत की तस्दीक और जिन्दगी भर जान व माल से साथ देते हुए इस्लाम की तब्लीग में मश्गुल रहे | मक्का की तेरा साला जिन्दगी मे मुश्रीकों की तरफ से पहुँचाई जाने वाली हर किस्म की तकलीफ को बरदाशत करते रहे, अहम मश्वरे और राज की बातें हुजर सल. उन्ही से करते थे | चुनान्चे हिजरत के मौके पर अबू बक्र सिद्दिक रज. ने आप के साथ गारे सौर में तीन दिन कयाम फरर्माया, फिर वहाँ से मदीना मूनव्वरा तशरीफ ले गए, इस्लाम की हिफाजत के लिये हर मौके पर अपना माल खर्च करते रहे और दी

मदीना मुनव्वरा

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तुफाने नूंह के बाद हजरत नूह के पर पोते इमलाक बिन अरफख्शज बिन साम बिन नूह यमन में बस गए थे | अल्लाह तआला ने उन को अरबी जबान इलहाम की, फिर उन की औलाद ने आरबी बोलना शुरू कर दिया, यह अरब के इलाकों में चारों तरफ फैले, इस तरह पुरे जजीरतुल अरब में अरबी जबान आम हो गई, उसी जमाने में मदीना की बुन्याद पडी, इमलाक की औलाद में तुब्बा नामी एक बादशाह था, जिस ने यहुदी उलमा से आखरी नबी की तारीफ और यसरीब ( मदीना ) में उन की आमद की खबर सुन रखी थी, इस लिये शाह तुब्बा ने यसरीब में एक मकान हुजूर सल. के लिये तय्यार कर के एक आलिम के हवाले कर दिया और वसिय्यत की के यह मकान नबीए आखिरूज जमाँ की आमद पर उन्हें दे देना, अगर तुम जिन्दा न रहो तो अपनी औलाद को इस की वसिय्यत कर दैना, चुनान्चे हुजूर सल. की ऊँटनी हजरत अबू अय्युब अन्सारी के मकान पर रुक थी, हजरत अबू अय्युब उन आलिम ही की औलाद में से थे, जिन को शाहे तुब्बा ने मकान हवाले किया था, साथ ही शाह तुब्बा ने एक खत भी हुजूर सल. के नाम लिखा, जिस में आप सल. से मुहब्बत, ईमान लाने और जियारत के शौक को जाहिर किया था | हुजूर सल. की हिजरत के बाद यसरिब का नाम बदल कर “मदीनतुर

वह मुबारक घर जहाँ आप रसुलूल्लाह सल. ने कायम फर्माया

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रसुलूल्लाह जब मक्का से हिजरत कर के मदीना आए, तो यहाँ के लोगों ने आप का पुरा जोश इस्तीकबाल किया | कुबा से मदीना तक रस्ते के दोनों जानिब सहाब-ए-किराम की मुकद्दस जमात सफ बनाए हुए खडी थी, जब आप मदीने में दाखील हुए, तो हर कबीले और खान्दन वाला ख्वाहिशमन्द था और हर शख्स की दिली तमन्ना थी के हुजूर सल. की मेजबानी का शर्फ हमें नसीब हो चुनान्चे आप की खिदमत में उँटनी की नकील पकड कर हर एक अर्ज करता के मेरा घर मेरा मांल और मेरी जान सब कुछ आप के लिये हाजिर है | मगर आप उन्हें दुआए खैर व बरकत देते और फर्माते ऊँटनी को छोड दो ! याह अल्लाह के हुक्म से चल रही है | जहाँ अल्लाहा का हुक्म होगा वही ठहरेगी, ऊँटनी चल कर हजरत अबू अय्युब अन्सारी के मकान के सामने रुक गई | सय्यदना अबू अय्युब अन्सारी ने इन्तेहाई ख़ुशी व मसर्रत के आलम में काजाव उठाया और अपने घर ले गए | इस तरह उन्हें रसूलुल्लाह की मेजबानी का शर्फ हासील हुआ | आप ने सात माह तक उस मकान में कायम फर्माया |

मदीना में हुजूर का इन्तेजार

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मदीना में हुजूर का इन्तेजार जब मदीना तय्यिबा के लोगों को यह मालूम हुआ के रासुलुल्लाह मक्का से हिजरत कर के मदीना तशरीफ ला रहे है, तो उन की ख़ुशी की इन्तेह न रही, बच्चे बच्चीयाँ अपने कोठों और छतों पर बैठ कर हुजूर सल. के आने की ख़ुशी में तराने गती थी, रोजाना जवान, बडे बुढे शहर से बहार निकल कर दोपहर तक आप सल. की तशरीफ आवरी का इन्तेजार करते थे, एक दिन वह इन्तेजार कर के वापस हो ही रहे थे, के एक यहुदी की नजर आप सल. पार पडी तो वह फौरन पुकार उठा “लोगो ! जिन का तुम को शिद्द्त से इन्तेजार था वह आगए ! बस फिर क्या था, इस आवाज को सुनते ही सारे शहर में ख़ुशी की लहर दौड गई और पुरा शहर “अल्लाहु अक्बर” के नारों से गुँज उठा और तमाम मुसलमान इस्तिकाबाल के लिये निकल आए, अन्सार हर तरफ से जौक दर जौक आए और मुहब्बत व अकीदत के साथ सलाम अर्ज करते थे, खुश आमदीद कहते थे | तकरीबन पांच सौ अन्सारियों ने हुजूर सल. का इस्तिकबाल किया |

रसूलुल्लहा स. की ताईफ से वापसी

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रसूलुल्लहा स. ने ताईफ जा कर वहाँ के सरदारों और आम लोगों को दीने हक की दावत दी, मगर वहाँ के लोगों ने इस्लाम कबूल करने के बजाए, रसूलुल्लहा स. की सख्त मुखालफत की गालियाँ दी, पत्थरों से मारा और शहर से बाहार निकाल दिया, पत्थरों की चौट से आप स. के बदन मुबारक से खून जरी हो गया, शहर से बाहार आकर एक बाग मे रुके, वहाँ हुजूर स. ने अल्लाह तआला से दुआ की और अपनी कमजोरी, बे बसी और लोगों की निगाहों में बे बकअती की फरयाद की और अल्लाह तआला से नुसरत व मदद की दरख्वास्त की और फर्माया : इलाही ! अगर तू मुझ से नाराज नहीं है, तो मुझे किसी की परवाह नहीं, तू मेरे लिये काफी है, इस मौके पर अल्लाह तआला ने पहाडों के फरिश्ते को आप स. के पास भेजा और उस ने आप स. इस की इजाजत चाही के वह उन दोनों पहाडों को मिला दे, जिन के दर्मियान ताइफ का शहर आबाद है, ताके वह लोग कुचल कर हलाक हो जाएँ, मगर हुजूर स. की रहीम व करीम जात ने जवाब दिया : मुझे उम्मीद है के उन की औलाद मे से ऐसे लोग पैदा होंगे, जो एक खुदा की इबादत करेंगे और उस के साथ किसी को शरीक नही ठहराएँगे | हुजूर स. की इस दुआ का असर था के मुहम्मद बिन कासिम जैसे बहाद