रसूलुल्लहा स. की ताईफ से वापसी

रसूलुल्लहा स. ने ताईफ जा कर वहाँ के सरदारों और आम लोगों को दीने हक की दावत दी, मगर वहाँ के लोगों ने इस्लाम कबूल करने के बजाए, रसूलुल्लहा स. की सख्त मुखालफत की गालियाँ दी, पत्थरों से मारा और शहर से बाहार निकाल दिया, पत्थरों की चौट से आप स. के बदन मुबारक से खून जरी हो गया,

शहर से बाहार आकर एक बाग मे रुके, वहाँ हुजूर स. ने अल्लाह तआला से दुआ की और अपनी कमजोरी, बे बसी और लोगों की निगाहों में बे बकअती की फरयाद की और अल्लाह तआला से नुसरत व मदद की दरख्वास्त की और फर्माया : इलाही ! अगर तू मुझ से नाराज नहीं है, तो मुझे किसी की परवाह नहीं, तू मेरे लिये काफी है, इस मौके पर अल्लाह तआला ने पहाडों के फरिश्ते को आप स. के पास भेजा और उस ने आप स. इस की इजाजत चाही के वह उन दोनों पहाडों को मिला दे, जिन के दर्मियान ताइफ का शहर आबाद है, ताके वह लोग कुचल कर हलाक हो जाएँ, मगर हुजूर स. की रहीम व करीम जात ने जवाब दिया : मुझे उम्मीद है के उन की औलाद मे से ऐसे लोग पैदा होंगे, जो एक खुदा की इबादत करेंगे और उस के साथ किसी को शरीक नही ठहराएँगे | हुजूर स. की इस दुआ का असर था के मुहम्मद बिन कासिम जैसे बहादूर नौजवान ताईफ के कबीला बनी सकीफ में पैदा हुए, जिन के हाथों अल्लाह तआल ने हिन्दुस्तान तक इस्लाम को पहुँचाया                       
         

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