हुस्ने निय्यत की अहमियत व जरुरत Husne Niyyat ki ahmiyat v jrurat.

इन्सान के आमाल और किरदार मे हुस्ने निय्यत को बडी अहमियत हासिल है | बल्के इन्सान के आमाल की अल्लाह के यहाँ मकबुलियत का दरोमदार निय्यत के दुरुस्त होने पर है | अगर इन्सान अपनी जिंदगी नबी अकरम सल्ल. अलैहि व सल्लम की लाई हुई शरीअत के मुताबिक गुजारे,
उसके निय्यत सही हो और वो अपना हर कौल व अमल अल्लाह तआला कि खुशनुदी और रजा की खातिर अंजाम दे तो इन्सान का उठना बैठना, खाना पीना, सोना जागना गर्ज उसकी चौबीस घंटे की जिंदगी का हर छोटा बडा अमल हर लम्हा इबादत में शुमार होगा | इसके बरखिलाफ कोई इन्सान बडे बडे कारनामे अंजाम देता है लेकीन उसके आमाल हुस्ने निय्यत की रूह से खाली है तो ये आमाल अगरचे जाहिरी बडे बडे है लेकीन चुँके बेजान और बेरुह है, लेहजा अल्लाह के नज्दिक ऐसा अमाल के अहमियत खत्म हो जाती है | हुस्ने निय्यत के बावजुद इन्सान को अपने आमाल व अफआल पर घमंड और भरोसा नही करना चाहिए, बल्के मुसलमान अल्लाह तआला के फजल का तालिब रहना चाहिए, नफ्स व शैतान के धोके से डरना चाहिए और हुस्ने खात्मा की दुआ करनी चाहिए, क्यौके हुस्ने खात्मा ही आमाल का मदार है | अल्लाह तआला हमे अपने आमाल मे हुस्ने निय्यत पैदा करने और गुरुर और धोके से बचने की तौफीक अता फरमाए |

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