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Showing posts from February, 2019

हजरत मूसा की पैदाइश

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                    हजरत मूसा की पैदाइश हजरत मूसा बनी इस्राईल के जलीलुलकद्र नबी हैं, कुर्आने करीम में १३६ मर्तबा उन का जिक्र आया है |   अल्लाह तआला ने उन्हें हम कलामी का शर्फ भी अता फर्माया है, उन के वालिद का नाम इमरान था, वह सोलहंवी सदी कब्ल मसीह में पैदा हुए | पैदाइश के बाद उन की वालिदा ने फिरऔन के डर से उन्हें एक संदूक में रख कर दरिया में बहा दिया, संदूक बहता हुआ फिरऔन के महल तक जा पहुँचा, फिरऔन और उस की बीवी आसिया ने संदूक निकलवाया | अल्लाह तआला ने उस मासूम बच्चे की मुहब्बत आसिया के दिल में डाल दी और फिरऔन को उस की तरबियत व परवरिश करने और बेटा बनाने पर मजबूर कर दिया, इस तरहा गैबी तौर पर एक शहजादे की तरह शाही महल में हजरत मुसा की परवरिश हुई |    जब वह जवान हुए, तो उन्होंने एक मजलूम इस्राईली की मदद करते हुए फिरऔन की कौम के एक आदमी को घूँसा मार दिया जिस की वजह से वह मर गया | हजरत मूसा अपनी जान के खौफ से मिस्र छोड कर मदयन चले गए वहाँ हजरत शुऐब से मुलाकात हुई तो उन्होंने हजरत  मूसा  की आमानतदारी को देख कर अपनी बेटी सफूरा से निकाह कर दिया |   जब वह अपने अहले खाना को लेकर मद

कौमे बनी इस्राईल

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                                                     कौमे बनी इस्राईल   बनी इस्राईल का लफ्ज कुर्आने करीम में तकरीबन ४० मर्तबा आया है | इस्राईल हजरत याकूब का दुसरा नाम है उन के बारह फरजन्दों से जो नस्ल चली, उन्हें “बनी इस्राईल” कहा जाता है | उन का मजहब यहुदियत है | मजहबी व कौमी एतेबार से तारीख में उन की बाडी अहेमियत है | तकरीबन दो हजार साल तक उन के अन्दर अम्बिया व मुरसलीन पैदा होते रहे और दुनियावी तरक्कियाँ भी उन्हें सदियों तक हासिल रहीं हजरत दाऊद व सुलेमान जैसे अल्लाह के रसूल और अजीम सलतनत व हुकूमत वाले बादशाह और हजरत यूसुफ जैसे जलीलुलकद्र नबी और शाहे मिस्र उसी कौम में पैदा हुए | दीने इस्लाम के जाहिर होने तक यह लोग अपने वतन मुल्के शाम से निकल कर हिजाज और उन के अतराफ में फैल चुके थे | खास तौर पर मदीना मूनव्वर के इर्द गिर्द उन की आबादियाँ थी | यह लोग बडे मालदार और तिजारात में माहिर समझे जाते थे | अल्लाह तआला ने कुर्आने करीम में बार बार उन पर अपने खुसूसी इनामात का तजकेरा किया है, साथ ही उन की बदआमाली, बद अहेदी, मुसलमानों और अल्लाह के पैगम्बरों के साथ उन की बदसुलूकी और दुसरी बहु

हजरत लुकमान हकीम

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                     हजरत लुकमान हकीम   हजरत ईसा से तकरीबन तीन हजार साल पहले अरब में लुकमान नाम के एक बडे नेक इन्सान गुजरे है, जो हजरत अय्युब के भांजे या खाला जाद भाई थे |  आप अफरीकिय्यून्नस्ल थे और सूडान के नूबी खानदान से तअल्लुक रखते थे और अरब में एक गुलाम की हैसियत से आए थे, मगर आप निहायत नेक, आबिद व जाहिद, अकलमन्द और साहिबे हिकमत इन्सान थे | आप की हकीमाना बाते सहीफ-ए-लुकमान के नाम से अरबों में मशहूर थी | आप की हकीमाना बातों का जिक्र कुर्आने करीम मे सूर-ए-लुकमान में भी मौजूद है | आप अपने बेटे को जिन्दगी के आखिर में नसीहत करते हुए फार्माते है, बेटा ! अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक न करना, बिलाशुबा शिर्क बहुत बडा गुनाह है, बेटा ! नमाज पढा करो और नेक काम का हुक्म किया करो और बुरी बातों से मना किया करो और जो तुम पर मुसीबत आए, उस पर सब्र करो, बेशक यह हिम्मत के काम है और जमीन पर अकड कर न चलो, अल्लाह तआला अकड कर फख्रिया चाल चलने को पसन्द नही करते हैं | 

हजरत अय्यूब

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                      हजरत अय्यूब हजरत अय्यूब हजरत इसहाक की औलाद में से है | उन का शुमार अरब के पैगम्बरों में होता है | वह अल्लाह तआला के नेक और बडे साबिर शाकिर बंदे थे |  उन्होंने सब्र व शुक्र की ऐसी मिसाल पेश की के खुद अल्लाह तआला ने उन के सब्र व तकवा की शहादत दी | वह एक कामयाब ताजिर और मामलात में हददर्जा अमानत दार होने के साथ तकवा व परहेजगारी में भी बेमिसाल थे | वह गरीबों को खाना खिलाते, बेवाओं, मिस्कीनों और तंगदस्तों की खूब मदद किया करते थे | अल्लाह तआला ने उन्हें बहुत माल व दौलत और औलाद से नवाजा था फिर सख्त आजमाइश और इम्तेहान में मुब्तला किया और अता करदा माल व दौलत और औलाद सब कुछ वापस ले लिया और खुद वह अठ्ठारा साल तक बीमारी में मुब्तला रहे | मगर इस कडी आजमाइश में भी, कभी भी अपनी जबान से शिकवा शिकायत नही किया | और हमेशा सब्र व शुक्र ही करते रहे और अल्लाह तआला से दुआएं माँगते रहे | अल्लाह तआला ने उन की दुआ कबूल फर्माई और सब्र के बदले में उन्हें पहले से जियादा माल व दौलत और औलाद से नवाजा और बीमारी से नजात दे कर सेहत व तंदुरुस्ती आता फर्माई |     

हजरत शुऐब की दावत और कौम की हलाकत

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          हजरत शुऐब की दावत और कौम की हलाकत अल्लाह तआला ने हजरत शुऐब को “अहले मदयन” और “असहाबे ऐका” के पास हिदायत के लिये भेजा,  यह कौम शिर्क व बुत परस्ती में मुब्तला होने के अलावा तिजारती लेन देन में धोके बाजी, नाप तौल में कमी, लूट खसूट और डाका जनी में हद से बढ गई थी | हजरत शुऐब ने उन तमाम बुराइयों से बाज रहने और ईमान व तौहीद कबूल करने की दावत दी, मगर इस नाफर्मान और मुख्तलिफ गुनाहों में मुब्तला कौम पर आप की नसीहत का कोई असर नही हुआ और पुरी कौम आप को शहर बद्र करने और संगसार करने की धमकियाँ देने लगी और अप की इबादत व नमाज का मजाक उडाने लगी, फिर भी हजरत शुऐब बराबर उन को समझाते रहे, कौमे लूत और दुसरी नाफर्मान कौमों के बुरे अन्जाम का तजकेरा कर के डराते रहे, मगर यह बद बख्त और नाफर्मान कौम जिद और हट धर्मी में बढती हि चली गई | बिलआखिर अल्लाह तआला ने उन को आसमानी आग और जमीनी जलजले से तबाह व बरबाद कर दिया | हजरत शुऐब अहले ईमान को लेकर “हजर मौत” चले गए और १४० साल की उम्र में वफात पाई |