रमजान की फरजियत और ईद की खुशी. RAMJAN KI FARJIYAT AUR ID KI KHUSHI.
सन २ हिजरी में रमजान के रोजे फर्ज हुए | इसी साल सदक-ए-फित्र और जकात का भी हुक्म नाजिल हुआ, रमजान के रोजे से पहले आशुरा का रोजा रखा जाता था, लेकीन यह इख्तियारी था, जब रसुलूल्लाहा सल. मदीना तशरीफ लाए, तो देखा के अहले मदीना साल में दो दिन खेल, तमाशों के जरीये खुशियाँ मनाते है,
तो आप सल. ने उन से दरयाफ्त फर्माया के इन दो दिनों की हकीकत क्या है ? सहाबा ने कहा : हम जमान-ए-जाहिलियत में इन दो दोनों मे खेल, तमाशा करते थे, चुनान्चे रसुलूल्लाह सल. ने फर्माया : अल्लाह ताआला ने इन दो दिनों को बेहतर दिनों से बदल दिया है, वह ईदुल अजहा और ईदुलफित्र है, बिल आखिर १ शव्वाल सन २ हिजरी को पहली मर्तबा ईद मनाई,
अल्लाह तआला ने ईद की खुशियाँ व मसर्रतें मुसलमानों के सर पर फताह व इज्जत का ताज रखने के बाद आता फर्माई, जब मुसलमान अपने घरों से निकल कर तक्बीर व तौहीद और तस्बीह व तहमीद की आवाजें बुलन्द करते हुए मैदान में जाकर नमाजे ईद अदा कर रहे थे, तो दिल अल्लाह की दी हुई नेअमतों से भरे हुए थे, इसी जजब-ए-शुक्र में दोगाना नमाज में उन की पेशानी अल्लाह के सामने झुकी हुई थी |
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अस्स अलुल्लहा अल अजीम रब्बील अरशील अजीम आय यशफीयका |
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