हजरत इब्राहीम की दावत


                    हजरत इब्राहीम की दावत
जब हजरत इब्राहीम ने अपनी कौम की शिर्क व बुत परस्ती और जलालत व गुमराही का मुशाहदा किया, तो उन्हें सीधी राह पर लाने की कोशिश करने लगे | सब से पहले अपने बाप को मुखातब होकर कहा : अब्बा जान ! आप ऐसी चीजों की क्यों इबादत करते हैं, जो सुनने देखने और बोलने की भी सलाहियत नही रखती, न ही वह नफा व नुकसान की मालिक हैं, वह चीजें बजाते खुद बेबस और लाचार हैं, उन में अपने वुजूद को भी बाकी रखने की ताकत नही है | ऐसी चीजें दुसरों के क्या काम आ सकती हैं | अब्बा जान ! सीधी और सच्ची रह वही है, जो मैं बता रहा हुँ के एक अल्लाह की इबादत करो, वही मौत व हयात का मालिक है | वही लोगों को रिज्क देता है, उसी के रहम व करम से आखीरत में कामयाबी मिल सकती है, वही हर एक को नजात देने पर कादिर है और वह जबरदस्त कुव्वत व ताकत का मालिक है | हजरत इब्राहीम ने उस के बाद कौम के लोगों को भी इन्हीं बातों की नसीहत की | मगर अफसोस ! किसी ने भी आप की दावत को कुबूल नही किया | उन के वालीद ने तो यहाँ तक कह दिया के इब्राहीम ! अगर तू बुतों की बुराई से बाज नही आया, तो मैं तुझे संगसार कर दुँग | फिर पुरी कौम भी हजरत इब्राहीम के खिलाफ साजिशें करने लगी |                                                                                                      

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