कौमे समूद
कौमे
समूद
कौमे समूद का जिक्र कुर्आन
मजीद में २३ मर्तबा आया है | कौमे आद की हलाकत के बाद यह अरब की मशहूर और कदीम
तरीन कौम है | इस का नसब हजरत नूह के बेटे साम से मिलता है, हिजाज व शाम के दर्मियान
वाहिद कुरा के मैदान में उन की आबादियाँ थी, जिन के खंडरात व निशानात आज भी मौजूद
हैं |
इन का दारूलहुकूमत मदीना तय्यबा से शिमाल की तरफ मकामे हिज्र में था, जिसे
अब “मदाइने सालेह” कहते हैं | इस कौम का जमाना हजरत इब्राहीम से पहले का है, यह
अपने वक्त की मोहज्जब, तरक्की याप्ता, ताक्तवर और बडी मालदार कौम थी, पहाडों को
तराश कर बडी बडी इमारतें बनाना और संग तराशो को भारी मजदूरी दे कर बडे बडे बुत बनवाना
इन की जिन्दगी का महबूब मश्गला था, इन के दिलों में बुतों की इतनी अकीदत व मुहब्बत
पैदा होगई थी के अल्लाह तआला को छोड कर इन्हीं की पूजा को अपनी नजात का जरिया समझने
लगे थे | जब उस कौम की शिर्क व बूत परस्ती हद से बढ गई, तो अल्लाह तआला ने उन की
हिदायत व इस्लाह के लिये हजरत सालेह को रसूल बना कर भेजा |
Comments
Post a Comment