हजरत नूह की दावत
हजरत नूह की दावत
जब लोगों की नाफर्मानी और
बुत परस्ती दुनिया में आम होगई, तो अल्लाह तआला ने उन की हिदायत रहेनुमाई के लिये
हजरत नूह को नबी बनाया |
उन्होनें लोगों को नसीहत करते और दीन की दावत देते हुए
फर्माया : तुम सिर्फ अल्लाह की इबादत व बन्दगी करो, वह तुम्हारे गुनाहों को माफ कर
देगा | इस नसीहत को सून कर कौम के सरदारों ने जवाब दिया : हम तुम्हे रसूल नही
मानते, क्योंकि तुम हमारे ही जैसे आदमी हो नीज तुम्हारी पैरवी जलील व हकीर और कम
दर्जे के लोगों ने कर रखी है | हजरत नूह ने फर्माया : अल्लाह तआला के यहाँ सआदत व
नेक बख्ती का दारोमदार दौलत पर नहीं, बल्के अल्लाह की रजामन्दी और इख्लासे निय्यत
पर है | मैं तुम्हे यह दावत माल व दौलत की उम्मीद पर नही, बल्के अल्लाह के हुक्म
और उस की रजा के लिये दे रहा हुँ | वही मेरी मेहनत का अज्र व सवाब अता फर्माएगा |
गर्ज हजरत नूह दिन रात इन्फिरादी व इज्तेमाई और खुसूसी व उमुमी तौर पर एक तवील
अर्से तक कौम को शिर्क व कुफ्र और अल्लाह तआला की नाफर्मानी से डरते रहे, मगर वह
बाज तो क्या आते, बल्के उल्टा अजाबे इलाही का मुतालबा करने लगे |
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