४) एक फर्ज के बारे मे
कजा नमाजों की अदाएगी :-
रसूलुल्लाह सल. ने फर्माया : “जो कोई नमाज पढना
भूल गया या नमाज के वक्त सोता रह गया, तो ( उस का कफ्फरा यह है के ) जब याद आजाए
उसी वक्त पढ ले |”
खुलासा : अगर किसी शख्स के
नमाज किसी उज्र की वजह से छुट जाए या सोने की हालत में नमाज का वक्त गुजर जाए तो
बाद में उस को पढना फर्ज है |
दिन में नमाज की अहेमियत :-
एक शक्स ने आप से (सल.)
अर्ज किया : “ऐ अल्लाह के रसूल ! इस्लाम में अल्लाह के नजदीक सब से जीयादा पसन्दीदा
अमल क्या है ? आप ने फर्माया : “नमाज को उस के वक्त पर अदा करना और जो शक्स नमाज
को ( जान बुझ कर ) छोड दे उस का कोई दीन नही है और नमाज दीन का सुतून है |”
बाजमात नमाज पढने की निय्यत से मस्जिद जाना :-
रसूलुल्लाह सल. ने फर्माया
: “जो शख्स अच्छी तरह वूजू करे, फिर मस्जिद में नमाज के लिये जाए और वहाँ पाहुँच कर
मालूम हो के जमात हो चुकी, तो उस को जमात की नमाज का सवाब होगा और उस सवाब की वजह
से उन लोगों के सवाब में कूछ कमी नहीं होगी, जिन्होंने जमात से नमाज पढी है |”
नमाजें गुनाहों को मिटा देती है :-
रसूलुल्लाह सल. ने सहाबा से पुछा : “अगर किसी के
दरवाजे पर एक नहेर हो और उस में वह हर रोज पाँच बार गुस्ल किया करे, तो क्या उस का
कूछ मैल बाकी रह सकता है ? सहबा ने अर्ज किया के कूछ भी मैल न रहेगा | आप ने
फर्माया के यही हालत है पाँचों वक्त की नमाजों की, के अल्लाह तआला उन के सबब
गुनाहों को मिटा देता है |”
मस्जिद में दाखिल होने के लीए पाक होना :-
रसूलुल्लाह सल. ने फर्माया
: “किसी हाइजा औरत और किसी जुनुबी : यानी नापाक आदमी के लिए मस्जिद में दाखील होने
की बिल्कुल इजाजत नही है |”
फायदा : मस्जिद में दाखील
होने के लीए हैज व निफास और जनाबत से पाक होना जरुरी है |
जुमा की नमाज अदा करना :-
रसूलुल्लाह सल. ने फर्माया : “जुमा की नमाज जमात के साथ अदा करना हर मुसलमान पर
लाजिम है; मगर चार लोंगों पर ( लाजीम नाही है ) (१) वह गुलाम जो किसी की मिलकियत
में हो | (२) औरत (३) नाबालिग
बच्चा (४) बीमार |”
फायदा : जहां जुमा के शराइत
पाए जाते हों, वहां जुमा की नमाज अदा करना हर सही व तन्दूरुस्त और बालिग मुसलमान
मर्द पर फर्ज है |
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